काठगोदाम निवासी सामाजिक कार्यकर्ता इस्लाम हुसैन ने पॉलीथिन के खतरों को बहुत पहले ही भाप लिया था, उनके कार्यों को देखते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय में उनपर हुआ है शोघ कार्य
काठगोदाम निवासी सामाजिक कार्यकर्ता इस्लाम हुसैन ने पॉलीथिन के खतरों को बहुत पहले ही भाप लिया था जब ही तो पिछले 27 साल से लोगों को पॉलीथिन के खतरों को लेकर जागरूक करने में लगे हुए हैं। उनके योगदान को इससे समझा जा सकता है कि पॉलीथिन के विकल्प के रूप में उन्होंने 20 साल पहले ही कागज के मजबूत बैग तैयार करवा लिये थे।
रानीखेत में जन्मे और काठगोदाम निवासी इस्लाम हुसैन ने पॉलीथिन के नुकसान और पर्यावरण को खतरों को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिये पहल संस्था बनायी। वर्ष 1991 से अब तक कई राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सेमिनारों में हिस्सा लेकर पॉलीथिन के खतरों और अघुलनशील कचरे को लेकर लोगों को जागरूक किया। उनका मानना है कि जब तक नई पीढ़ी को भविष्य के खतरों के प्रति जागरूक नहीं किया जाएगा तब तक बदलाव नहीं आ सकता। यही वजह रही कि अपने अभियानों के लिये उन्होंने शिक्षण संस्थाओं का चयन किया। इसके अलावा उन्होंने महिला स्वयं सहायता समूहों को भी स्वच्छता और पॉलीथिन के खिलाफ चलने वाली मुहिम का हिस्सा बनाया।
पॉलीथिन के विकल्प के तौर पर इस्लाम ने पॉलीथिन हटाओ, कागज के बैग बनाओ का नारा देकर इन महिलाओं को अभियान में शामिल किया। कई बस्तियों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से कागज के मजबूत बैग बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार से भी जोड़ा गया। अपने इस अभियान के दौरान हल्द्वानी और कुमाऊंभर की करीब 10 हजार महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन से जोड़ने के लिए महिन्द्रा एंड महिन्द्रा ग्रुप ने उन्हें इनोवेशन कार्यक्रम के तहत दो लाख रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। इस्लाम हुसैन अब भी लगातार सक्रिय हैं।
यह उनके कार्यों के महत्व को दर्शाता है कि उनके कार्यों को देखते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय की अर्थशास्त्र की छात्रा बुशरा मतीन ने उनपर शोघ कार्य पूरा किया। महिला सशक्तीकरण में इस्लाम हुसैन और पहल संस्था के योगदान पर किए शोध पर कुविवि ने बुशरा को वर्ष 2017 में पीएचडी की उपाधि प्रदान की है।